मैं और मेरी नोकझोंक ! एक खूबसूरत झगड़ा
"इंशान गलतियों का पुतला है"वह बोली
"यह कौन तय करता है कि क्या सही है और क्या गलत "मैंने कहा ।
वह झुंझलाई"सच हमेशा सच ही रहता है।"
मैंने भी हस के चुनौती दे दी"अगर मैं साबित कर दूँ की यह गलत है तो।"
अब उसके चेहरे की तमतमाहट देखने वाली थी,उसके गालों पर दया की नहीं गुस्से की लाली थी।
"तुम्हे तुम्हारा गुरुर ले डूबेगा"शेरनी की तरह गुर्राता उसका स्वर आया।
"डूबना तो है पर ,तुम्हारी नशीली आँखों में"मैं किसी शराबी सा लड़खड़ाया।
इससे पहले की वह मुझे रोक पाती,मैंने कहा"अगर मैं कहूं कि मैं कभी सच नहीं बोलता "तो इसके क्या मायने है?अगर मेरा कहना सच है,तो मैं हमेशा झूठ बोलता हूँ।और यह अगर सच है कि मैं हमेशा झूठ बोलता हूँ ,तो मैंने झूठ कहा है कि मैं कभी सच नहीं बोलता ।
अब उसकी बोलती बंद हो गई।फिर भी वह बाज नहीं आई"जो आँखे सारी दुनियां को देखती है,उन्हें खुद को देखने के लिये आईने की जरुरत होती है।"
मैंने भी घुटने टेक दिये"बिना गलती किये सजा पाना भी तो मोहब्बत होती है।"
पर उसने तो शराफत की सारी हदें पार कर दी,जब वह बोली "गलती करोगे तभी तो सीखोगे,काश!तुमने कभी इतिहास पढ़ा होता।"
तब मैंने उसे जबाब दिया"एक वक्त ऐसा भी था,जब इतिहास का कोई वजूद नहीं था,और मेरा मकसद इतिहास पढना नहीं,इतिहास बनाना है"अब यह तुम तय करो की ,तुम्हे इतिहास पढना-पढ़ाना है या इतिहास के पन्नों में मेरे साथ अपना नाम दर्ज करवाना है।।।।।।।।।
धन्यवाद
धीरज वाणी
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