सामाजिक कविता
% जरा सा जिंदगी में व्यवधान बहूत है %
% तमाशा देखने को यंहा इन्शान बहूत है %
% कोई भी ठीक नही रास्ता बताता यंहा %
% अजीब से इस शहर में नादान बहूत है %
% न करना भरोसा यंहा भूल कर भी किसी पर %
% यंहा हर गली में यारों, बेईमान बहूत है %
% दौड़ते फिरते है न जाने क्या पाने को %
% लगे रहते है जुगाड़ में ,परेसान बहूत है %
% खुद ही हम बनाते है जिंदगी को पेचीदा %
% वरना जीने के नुस्खे तो आसान बहूत है %
धन्यवाद
धीरज वाणी
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