आधुनिक युग एक श्राप की जिंदगी है ! प्रेरणादायक कविता ।
कुछ गाड़ियों में चलते है कुछ टुकड़ो पर पलते है।
कुछ ऐसी में रहते है कुछ सड़कों पर सड़ते है।
इंसानियत को भूलकर लोग धर्मो के लिये लड़ते है।
लानत है इस युग पे जिसे आधुनिक कहते है।
इस दुनिया में भी लोग अजीबो गरीब रहते है।
कुछ इंगलिश का पौआ लगाते हुए ,रोटी को तरसते है।
बुजुर्गो को ठुकराकर लोग गाय को माता कहते है।
कुछ दुखो से बंचित तो कुछ हँसते हँसते सहते है।
लानत है इस युग पे जिसे आधुनिक कहते है।
गरीबो की मेहनत पूंजी पति खा रहे है।
आजकल के विद्यार्थी यो यो हनी सिंह गा रहे है।
पेड़ दिन प्रतिदिन तेजी से काटे जा रहे है।
खुद जंगल काट कर धरती को माँ कहते है।
लानत है इस युग पे जिसे आधुनिक कहते है।
बेघर हुए जंगली को जो जानवर कहते है।
वो क्या जाने असली जानवर तो शहरो में रहते है।
रेप की घटनाये इस कदर हो रही है हिंदुस्तान में।
इंसानियत मिटती जा रही है आज के इंशान में।
कुछ लोग बेटियो को धरती का बोझ समझते है।
लानत है इस युग पे जिसे आधुनिक कहते है।
कोई अपनों को खोता है कोई भूखे पेट सोता है।
जिंदगी के सफर में हर गरीब रोता है।
बहूत से झमेले है इन दर्द गमो के मेले में।
जीकर भी तू मर रहा गुमनामी और अकेले में।
जिंदगी तो मेहमान है पल दो पल जी लेने में।
हर दुःख और हर गम पी लेने में।
किसी को होती नहीं सुखी रोटी तक नसीब ।
कोई खिला रहा कुत्तो को ब्रेड बटर का पीस।
इन ब्रेड बटर को देखकर बदनसिबो के दिल मचलते है।
लानत है इस युग पे जिसे आधुनिक कहते है।
धन्यवाद
धीरज वाणी
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