दर्द भरी कविता
आज तूफान आया था घर के बरामदे में।
उजड़ गया तिनको का महल एक ही झोके में।
उस चिड़िया की आवाज आज न सुनाई दी।
फिर से जुट गयी बेचारी सब सवारने में।
बनते बिगड़ते हौसले से ,फिर बना ली वो घोसला।
पर किसी को न दिखा ,चिड़िया का वो टूटता पंख नीला।
अब वो कैसे उड़े,नीले गगन में।
जंहा बसते थे उसके अरमान।
सबर का परीक्षा उसने भी दिया।
बना लिया घोसला,मगर कुर्बान खुद को किया।
धन्यवाद
धीरज वाणी
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