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Showing posts from February, 2020

अब बिहार के शिक्षकों का क्या होगा

#आखिर बिहार के शिक्षक हड़ताल पर क्यो है,पूरा मामला को समझते हैं इस लेख के द्वारा                                  सबसे पहले हम समझेंगे ये शिक्षक कौन हैं और आम शिक्षकों के मुकाबले में इन्हें कितना कम वेतन मिलता है                      बिहार में 2003 से सरकारी स्कूलों में शिक्षा मित्र रखे जाने का फैसला किया गया था, उस वक्त में दसवीं और बारहवीं में प्राप्त अंकों के आधार पर इन शिक्षकों को 11 महीने के अनुबंध पर रखा गया था. इन्हें मासिक 1500 रुपये का वेतन दिया जा रहा था. फिर धीरे धीरे उनका अनुबंध भी बढ़ता रहा और उनकी आमदनी भी बढ़ती रही.                 2006 में इन शिक्षा मित्रों को नियोजित शिक्षक के तौर पर मान्यता मिली. मौजूदा समय में इन नियोजित शिक्षकों में प्राइमरी टीचरों को 22 हजार से 25 हजार रुपये प्रतिमाह मिलते हैं, वहीं माध्यमिक शिक्षकों को 22 से 29 हजार रुपये मिलते हैं, हाई स्कूलों के ऐसे शिक्षकों को 22 से 30 ...

आजादी के बाद से बिहार का राजनीतिक सफर

आज यक़ीन करना मुश्किल लगता है कि 1952 तक बिहार देश का सबसे सुशासित राज्य था और इसी बिहार में, जो 270 ईसा पूर्व में मगध था, सम्राट अशोक ने प्रशासन प्रणाली एक ढाँचा विकसित किया था. आज भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह बहस चल रही है कि क्या सम्राट अशोक ने ही आधुनिक खुली अर्थव्यवस्था की नींव रखी थी. लेकिन यह विडंबना है कि समकालीन राजनीति में उसी बिहार का उल्लेख सबसे अराजक राज्य के रुप में होता है. इसी बिहार ने आज़ादी के बाद का देश का अकेला जनआंदोलन खड़ा किया लेकिन यही बिहार ग़रीबी और कुपोषण से लेकर राजनीति के अपराधीकरण तक के लिए बदनाम भी सबसे अधिक हुआ. हाल के दिनों में आंकड़ो ने बिहार के बदलने के संकेत दिए हैं लेकिन ज़मीनी स्थिति कितनी बदली है यह अभी अस्पष्ट है. कांग्रेस का दबदबा बिहार विधानसभा बिहार विधानसभा ने लगातार अस्थिर सरकारों का दौर भी देखा है अन्य उत्तर भारतीय राज्यों की तरह ही बिहार भी लंबे समय तक कांग्रेस के प्रभाव में रहा है. वर्ष 1946 में श्रीकृष्ण सिन्हा ने मुख्यमंत्री का पद संभाला तो वे वर्ष 1961 तक लगातार इस पद पर बने रहे. चार छोटे ग़ैर कांग्रेस सरकारों के कार्यकाल को छोड़ दें तो...